कक्षा 12वीं बोर्ड सीजी के लिए फ्लेमिंगो की सभी पाठों का सारांश हिंदी में


Hello students,

Chandra Study Room में आपका हार्दिक स्वागत है, जहाँ हम आपके शैक्षिक सफर को सरल और रोचक बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह ब्लॉग विशेष रूप से छत्तीसगढ़ बोर्ड (सीजी बोर्ड) के कक्षा 12वीं के छात्रों के लिए तैयार किया गया है, जो अंग्रेजी विषय की पाठ्यपुस्तक फ्लेमिंगो के सभी पाठों का हिंदी में सारांश प्रदान करता है। हमारा उद्देश्य आपको प्रत्येक पाठ की मुख्य अवधारणाओं, विषयवस्तु, और महत्वपूर्ण बिंदुओं को आसान और समझने योग्य भाषा में उपलब्ध कराना है, ताकि आपकी बोर्ड परीक्षा की तैयारी न केवल प्रभावी हो, बल्कि आनंददायक भी हो। 

So let's start our journey!

"द लास्ट लेसन" (The Last Lesson) का सारांश

यह कहानी अल्फ़ोंस डॉडेट द्वारा लिखी गई है और फ्रांस-प्रशिया युद्ध (1870-1871) की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जब फ्रांस के अलसास और लॉरेन जिले प्रशिया (जर्मनी) के कब्जे में चले गए थे।

कहानी का मुख्य पात्र फ्रांज़ नामक एक छोटा लड़का है। वह स्कूल के लिए देर हो चुका था और उसे डर था कि उसके शिक्षक, एम. हैमेल, उसे डांटेंगे क्योंकि उसने पार्टिसिपल्स (व्याकरण का एक नियम) याद नहीं किए थे। रास्ते में उसने टाउन हॉल के नोटिस बोर्ड पर भीड़ देखी, जहाँ आमतौर पर बुरी खबरें लगी होती थीं।

जब वह स्कूल पहुँचा, तो सब कुछ असामान्य रूप से शांत था, जैसे रविवार की सुबह हो। एम. हैमेल ने अपनी सबसे अच्छी पोशाक पहनी हुई थी, जिसे वे केवल निरीक्षण या पुरस्कार वितरण के दिनों में पहनते थे। सबसे आश्चर्य की बात यह थी कि कक्षा के पिछले बेंचों पर गाँव के बुज़ुर्ग बैठे थे, जो बहुत उदास दिख रहे थे।

एम. हैमेल ने घोषणा की कि यह उनका आखिरी फ्रांसीसी पाठ है, क्योंकि बर्लिन से आदेश आया है कि अब से अलसास और लॉरेन के स्कूलों में केवल जर्मन पढ़ाई जाएगी। यह सुनकर फ्रांज़ को गहरा सदमा लगा। उसे अपनी भाषा फ्रांसीसी न सीखने का और समय बर्बाद करने का बहुत पछतावा हुआ। अचानक उसे अपनी किताबें और एम. हैमेल प्रिय लगने लगे।

एम. हैमेल ने फ्रांसीसी भाषा की उपेक्षा के लिए खुद को, छात्रों और उनके माता-पिता को दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि जब लोग गुलाम हो जाते हैं, तो जब तक वे अपनी भाषा से जुड़े रहते हैं, तब तक उनके पास अपनी जेल की चाबी होती है।

उस दिन एम. हैमेल ने बड़े धैर्य और लगन से पढ़ाया। फ्रांज़ को सब कुछ आसानी से समझ में आ रहा था। उसने पहले कभी इतने ध्यान से नहीं सुना था। व्याकरण के बाद, उन्होंने लेखन का पाठ पढ़ाया, और फिर इतिहास का।

जैसे ही चर्च की घंटी ने बारह बजाए और प्रशिया के सैनिकों के बिगुल की आवाज़ आई, एम. हैमेल बहुत भावुक हो गए। वे कुछ बोल नहीं पाए। उन्होंने ब्लैकबोर्ड पर बड़े अक्षरों में लिखा: "विवे ला फ्रांस!" (फ्रांस जिंदाबाद!) और फिर हाथ के इशारे से कक्षा समाप्त कर दी।

यह कहानी भाषा के प्रति प्रेम, देशभक्ति और स्वतंत्रता के महत्व को दर्शाती है।

 

पाठ: लॉस्ट स्प्रिंग (खोया हुआ वसंत)

लेखिका: अनीस जंग

यह पाठ भारत में घोर गरीबी और उन परंपराओं के कारण लाखों बच्चों के खोए हुए बचपन की मार्मिक कहानी है जो उन्हें अभाव और शोषण का जीवन जीने के लिए मजबूर करती हैं। लेखिका दो कहानियों के माध्यम से इस भयावह सच्चाई को उजागर करती हैं।

पहली कहानी: "समटाइम्स आई फाइंड अ रुपी इन द गारबेज" (कभी-कभी मुझे कूड़े में एक रुपया मिल जाता है)

साहिब-ए-आलम:

यह कहानी साहिब नाम के एक युवा लड़के के इर्द-गिर्द घूमती है, जो दिल्ली के बाहरी इलाके सीमापुरी में रहता है। उसका पूरा नाम "साहिब-ए-आलम" है, जिसका अर्थ है "ब्रह्मांड का स्वामी," जो उसकी दयनीय स्थिति और गरीबी के बिल्कुल विपरीत है।

साहिब और उसका परिवार 1971 में बांग्लादेश (ढाका) से आए शरणार्थी हैं। तूफान ने उनके खेतों और घरों को नष्ट कर दिया था, इसलिए वे बेहतर जीवन की तलाश में सीमापुरी आ गए।

सीमापुरी में, साहिब और उसके जैसे हजारों बच्चे कूड़ा बीनने (रैग-पिकिंग) का काम करते हैं। उनके लिए कूड़ा "सोना" है, क्योंकि यह उनकी आजीविका का एकमात्र साधन है, उन्हें भोजन और कभी-कभी आश्चर्य (जैसे एक रुपया या जूता) प्रदान करता है।

बच्चों के पैरों में जूते या चप्पल नहीं होते। वे इसे परंपरा या पैसे की कमी का बहाना बनाते हैं, लेकिन यह उनकी स्थायी गरीबी को दर्शाता है।

साहिब स्कूल जाना चाहता है और टेनिस खेलना पसंद करता है, जिसे वह दूर से देखता है। लेखिका जब उससे उसके स्कूल न जाने के बारे में पूछती है, तो वह कहता है कि आस-पास कोई स्कूल नहीं है। लेखिका मजाक में एक स्कूल खोलने का वादा करती है, जिसे साहिब गंभीरता से लेता है।

बाद में, साहिब को एक चाय की दुकान पर नौकरी मिल जाती है। उसे 800 रुपये महीने और दिन का भोजन मिलता है। लेकिन, वह अब उतना स्वतंत्र और लापरवाह नहीं रहा जितना वह कूड़ा बीनते समय था। उसके चेहरे से वह बेफिक्री गायब हो गई है। वह अब अपना मालिक नहीं रहा; वह किसी और का नौकर बन गया है। उसका स्टील का कनस्तर उसके कूड़े के थैले से भारी लगता है, जो कभी उसका अपना था। उसका बचपन खो गया है।

दूसरी कहानी: "आई वांट टू ड्राइव अ कार" (मैं एक कार चलाना चाहता हूँ)

मुकेश:

यह कहानी मुकेश की है, जो फिरोजाबाद में रहता है। फिरोजाबाद भारत में चूड़ी बनाने के उद्योग का केंद्र है।

मुकेश का परिवार पीढ़ियों से चूड़ियाँ बनाने का काम कर रहा है। वे एक गंदी, तंग बस्ती में रहते हैं।

मुकेश अपने पारिवारिक पेशे से अलग सपना देखता है - वह एक मोटर मैकेनिक बनना चाहता है और कार चलाना सीखना चाहता है। यह उसके माहौल में एक विद्रोही सपना है।

लेखिका फिरोजाबाद में चूड़ी बनाने वालों की दयनीय स्थितियों का वर्णन करती है। वे अंधेरी, गर्म और बिना हवा वाली झोपड़ियों में, कांच की भट्टियों के पास उच्च तापमान में काम करते हैं। इससे अक्सर वे वयस्क होने से पहले ही अपनी आंखों की रोशनी खो देते हैं।

वे गरीबी के एक दुष्चक्र में फंसे हुए हैं। साहूकार, बिचौलिए, पुलिसकर्मी, कानून के रखवाले, नौकरशाह और राजनेता सभी मिलकर उनका शोषण करते हैं। वे संगठित नहीं हो सकते क्योंकि उन्हें पुलिस द्वारा पीटे जाने और जेल भेजे जाने का डर होता है।

मुकेश की दादी इसे अपने "कर्म" या भाग्य के रूप में स्वीकार करती हैं। वह कहती हैं कि उन्होंने अपने पति को चूड़ियों की धूल से अंधा होते देखा है, और वे चूड़ी बनाने वाली जाति में पैदा हुए हैं, इसलिए वे कुछ और नहीं कर सकते।

लेखिका सविता नाम की एक युवा लड़की को भी देखती है जो अपनी दादी के साथ यंत्रवत चूड़ियाँ बना रही है। वह शायद चूड़ियों की पवित्रता (सुहाग का प्रतीक) को नहीं समझती।

मुकेश का सपना, हालांकि धूल भरी गलियों में एक मृगतृष्णा जैसा लगता है, फिर भी एक उम्मीद की किरण है। वह गैरेज तक पैदल जाने और सीखने को तैयार है, जो उसके घर से बहुत दूर है। वह विमान उड़ाने का सपना नहीं देखता क्योंकि उसने फिरोजाबाद के आसमान में बहुत कम विमान उड़ते देखे हैं।

पाठ का समग्र संदेश:

"लॉस्ट स्प्रिंग" इन बच्चों की मासूमियत, उनके अधूरे सपनों और उस कठोर वास्तविकता को दर्शाता है जिसमें वे जीने को मजबूर हैं। यह पाठ समाज की उदासीनता और उन व्यवस्थाओं पर सवाल उठाता है जो बच्चों को उनके बचपन, शिक्षा और अवसरों से वंचित करती हैं और उन्हें गरीबी और शोषण के अंतहीन चक्र में फंसाए रखती हैं। "स्प्रिंग" (बसंत) जीवन के सबसे खूबसूरत चरण, यानी बचपन का प्रतीक है, जो इन बच्चों के जीवन से क्रूरतापूर्वक छीन लिया गया है।

 

"डीप वॉटर" (गहरा पानी) - विलियम डगलस

"डीप वॉटर" विलियम डगलस द्वारा लिखी गई एक आत्मकथात्मक कहानी है, जो उनकी पुस्तक "ऑफ़ मेन एंड माउंटेंस" (Of Men and Mountains) का एक अंश है। यह कहानी पानी के प्रति उनके गहरे डर (हाइड्रोफोबिया) और उस पर विजय पाने के उनके दृढ़ संकल्प का सजीव वर्णन करती है।

कहानी का सारांश:

बचपन का डर (प्रारंभिक अनुभव):

डगलस का पानी का डर तब शुरू हुआ जब वह केवल तीन या चार साल के थे। वह अपने पिता के साथ कैलिफोर्निया के एक समुद्र तट पर गए थे। वहाँ, एक शक्तिशाली लहर ने उन्हें नीचे गिरा दिया और पानी उनके ऊपर से बह गया। वह पानी में दब गए थे और उनकी सांस लगभग रुक गई थी। हालांकि उनके पिता हँस रहे थे क्योंकि यह कोई गंभीर घटना नहीं थी, लेकिन इस अनुभव ने नन्हे डगलस के मन में पानी के प्रति एक गहरा और स्थायी भय पैदा कर दिया।

वाई.एम.सी.ए. पूल की घटना (डर का गहरा होना):

जब डगलस दस या ग्यारह साल के थे, तो उन्होंने वाई.एम.सी.ए. (YMCA) पूल में तैरना सीखने का फैसला किया, क्योंकि यह सुरक्षित माना जाता था (यह एक छोर पर केवल दो-तीन फीट गहरा था और दूसरे छोर पर नौ फीट)। शुरुआत में सब ठीक था, और वह पानी में सहज होने लगे थे।

एक दिन, जब वह पूल के किनारे अकेले बैठे थे और दूसरों का इंतजार कर रहे थे, अठारह साल का एक हट्टा-कट्टा लड़का आया। उसने मजाक में डगलस को पूल के गहरे सिरे (नौ फीट वाले हिस्से) में फेंक दिया।

डगलस को तैरना नहीं आता था। वह पानी के नीचे चले गए, और घबरा गए। उन्होंने ऊपर आने की बहुत कोशिश की, अपनी पूरी ताकत लगाई, लेकिन हर बार वह और नीचे ही जाते रहे। उन्हें लगा जैसे उनके फेफड़े फटने वाले हैं। उन्होंने तीन बार ऊपर आने की असफल कोशिश की। इस दौरान उन्हें मृत्यु का अत्यंत निकट से अनुभव हुआ। अंततः, वह बेहोश होने लगे और उन्हें एक अजीब शांति महसूस हुई, जैसे मृत्यु स्वीकार कर ली हो। किसी तरह उन्हें बचाया गया और पूल के किनारे लिटाया गया, जहाँ वे उल्टियाँ कर रहे थे।

डर का प्रभाव:

इस भयानक अनुभव ने उनके पानी के डर को और भी कई गुना बढ़ा दिया। कई वर्षों तक, यह डर उनका पीछा करता रहा। वह पानी से संबंधित किसी भी गतिविधि, जैसे मछली पकड़ना, नौका विहार (कैनोइंग, बोटिंग), और तैराकी का आनंद नहीं ले पाते थे। जब भी वह पानी के पास जाते, उनका पुराना डर वापस आ जाता, उनके पैर कांपने लगते और पेट में अजीब सी बेचैनी होने लगती। यह डर उनके जीवन की खुशियों में एक बड़ी बाधा बन गया था।

डर पर काबू पाने का निर्णय और प्रयास:

आखिरकार, डगलस ने अपने इस डर का सामना करने और उस पर काबू पाने का फैसला किया। उन्होंने एक तैराकी प्रशिक्षक (instructor) की मदद ली।

सीखने की प्रक्रिया: प्रशिक्षक ने उन्हें धीरे-धीरे और व्यवस्थित तरीके से तैरना सिखाया।

पहले, प्रशिक्षक ने डगलस की कमर में एक रस्सी बांधी, जो एक पुली (pulley) के ऊपर से जाती थी। प्रशिक्षक रस्सी का एक सिरा पकड़े रहते थे, और डगलस पानी में अभ्यास करते थे। यह हफ्तों तक चला।

फिर, प्रशिक्षक ने उन्हें पानी के नीचे सांस छोड़ना और पानी के ऊपर सांस लेना सिखाया।

इसके बाद, उन्होंने पानी में पैर चलाना (kicking) सीखा।

धीरे-धीरे, उन्होंने इन सभी अलग-अलग हिस्सों को जोड़कर पूरी तरह से तैरना सीखा। यह प्रक्रिया कई महीनों तक चली (अक्टूबर से अप्रैल तक)।

डर का सामना: हर कदम पर, पुराने डर के छोटे-छोटे अंश वापस आते थे, लेकिन डगलस ने हार नहीं मानी और प्रशिक्षक के निर्देशों का पालन करते रहे।

स्वयं को परखना और अंतिम विजय:

प्रशिक्षण पूरा होने के बाद भी, डगलस यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि उनका डर पूरी तरह से खत्म हो गया है। इसलिए, उन्होंने अकेले तैरकर खुद को परखा।

वह न्यू हैम्पशायर की वेंटवर्थ झील (Lake Wentworth) गए और दो मील तैरकर स्टैम्प एक्ट द्वीप (Stamp Act Island) तक पहुँचे और वापस आए।

फिर भी, कुछ संदेह باقی थे, इसलिए वह वार्म लेक (Warm Lake) गए और उसके एक किनारे से दूसरे किनारे तक तैरकर गए।

जब वह वार्म लेक के बीच में थे, तो एक पल के लिए पुराना डर वापस आया, लेकिन उन्होंने उसे चुनौती दी और तैरना जारी रखा। झील के दूसरे किनारे पर पहुँचकर वह खुशी से चिल्लाए। उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने अपने डर पर पूरी तरह से विजय पा ली है।

निष्कर्ष और संदेश:

डगलस को अपने डर पर विजय पाने के बाद गहरी शांति और मुक्ति का अनुभव हुआ। यह कहानी यह दर्शाती है कि दृढ़ संकल्प, साहस और निरंतर प्रयास से किसी भी गहरे डर पर काबू पाया जा सकता है। डगलस का अनुभव हमें यह महत्वपूर्ण सबक सिखाता है कि "मृत्यु में शांति है, केवल मृत्यु के भय में ही आतंक है।" (जैसा कि रूजवेल्ट ने कहा था, "All we have to fear is fear itself.")। कहानी यह संदेश देती है कि डर केवल हमारे मन की एक अवस्था है, और यदि हम उसका सामना करने का फैसला करते हैं, तो हम उसे जीत सकते हैं और एक मुक्त जीवन जी सकते हैं।

यह कहानी व्यक्तिगत संघर्ष और मानवीय भावना की जीत का एक शक्तिशाली उदाहरण है।

 कहानी: द रैटरैप (The Rattrap) - चूहेदानी

लेखिका: सेल्मा लैगरलॉफ़ (Selma Lagerlöf)

परिचय:

यह कहानी एक गरीब और अकेले फेरीवाले (peddler) के इर्द-गिर्द घूमती है जो तार से बनी छोटी-छोटी चूहेदानियाँ बनाकर बेचता था। उसका जीवन बहुत कठिन था और वह भीख माँगकर या कभी-कभी छोटी-मोटी चोरियाँ करके अपना गुज़ारा करता था। उसका एक अजीब सा दर्शन था कि यह पूरी दुनिया एक बड़ी चूहेदानी (rattrap) है। जिस प्रकार चूहेदानी में पनीर या मांस का टुकड़ा चारे के रूप में रखा जाता है, उसी प्रकार दुनिया में धन, खुशियाँ, भोजन, वस्त्र और आश्रय जैसी चीजें लोगों को लुभाने के लिए चारे का काम करती हैं, और जो कोई भी इन चीजों के लालच में पड़ता है, वह इस चूहेदानी में फँस जाता है।

मुख्य घटनाएँ:

बूढ़े क्रॉफ्टर (किसान) से मुलाकात:

एक शाम, फेरीवाला एक बूढ़े किसान (crofter) के घर आश्रय माँगता है। किसान अकेला रहता था और किसी साथी की चाह में वह फेरीवाले का खुशी से स्वागत करता है। वह उसे खाना खिलाता है, उसके साथ ताश खेलता है और अपनी बातें साझा करता है। किसान उसे बताता है कि पहले वह राम्शो आयरनवर्क्स (लौह कारखाने) में काम करता था और अब अपनी गाय का दूध बेचकर गुज़ारा करता है। वह फेरीवाले को अपनी कमाई के तीस क्रोनोर (स्वीडिश मुद्रा) भी दिखाता है, जिन्हें उसने खिड़की के पास एक चमड़े की थैली में रखा था। फेरीवाला किसान की मेहमाननवाज़ी का आनंद लेता है।

विश्वासघात और चोरी:

अगली सुबह, जब किसान अपनी गाय का दूध निकालने जाता है, तो फेरीवाला भी उठकर चला जाता है। लेकिन थोड़ी देर बाद वह वापस आता है, खिड़की का शीशा तोड़ता है, थैली निकालता है और उसमें से तीस क्रोनोर चुरा लेता है। फिर वह थैली वापस वहीं रख देता है और जंगल के रास्ते भाग जाता है ताकि पकड़ा न जाए।

जंगल में भटकना और एहसास:

पैसे चुराने के बाद, वह मुख्य सड़क से बचकर जंगल के रास्ते जाता है। जंगल घना और घुमावदार था, और जल्द ही वह रास्ता भटक जाता है। थक-हारकर और निराशा में वह जमीन पर गिर पड़ता है। तब उसे एहसास होता है कि वह खुद अपने ही बनाए "दुनिया रूपी चूहेदानी" में फँस गया है। तीस क्रोनोर उसके लिए चारे का काम कर गए थे।

राम्शो आयरनवर्क्स में शरण:

जब वह निराश होकर लेटा होता है, तो उसे पास के राम्शो आयरनवर्क्स से हथौड़े की ठक-ठक की आवाज़ सुनाई देती है। वह हिम्मत जुटाकर उस दिशा में बढ़ता है और कारखाने में पहुँच जाता है। वहाँ वह भट्टी के पास जाकर गर्मी पाने के लिए लेट जाता है। कारखाने का मालिक (आयरनमास्टर), जो एक प्रमुख उद्योगपति था, रात में कारखाने का निरीक्षण करने आता है। वह अंधेरे में लेटे हुए फेरीवाले को गलती से अपना पुराना सेना का साथी, कप्तान वॉन स्टाले (Captain von Stahle), समझ लेता है। फेरीवाला आयरनमास्टर को सही नहीं बताता, क्योंकि उसे लगता है कि शायद इस गलतफहमी से उसे कुछ पैसे मिल जाएँगे।

 एडला विल्मैन्सन का आगमन:

आयरनमास्टर फेरीवाले (जिसे वह कप्तान समझ रहा था) को क्रिसमस मनाने के लिए अपने घर आमंत्रित करता है। फेरीवाला डर के मारे मना कर देता है क्योंकि उसे अपने चुराए हुए पैसे का डर था। तब आयरनमास्टर अपनी बेटी, एडला विल्मैन्सन (Edla Willmansson), को उसे लेने भेजता है। एडला बहुत दयालु, समझदार और सहानुभूतिपूर्ण लड़की थी। उसके विनम्र और स्नेहपूर्ण व्यवहार से फेरीवाला प्रभावित होता है और उसके साथ उनके घर जाने के लिए तैयार हो जाता है। एडला को शुरू से ही उस पर थोड़ा संदेह होता है कि वह या तो भागा हुआ है या कोई चोर है, लेकिन वह फिर भी उसके प्रति दया दिखाती है।

सच्चाई का खुलासा और एडला की दयालुता:

अगली सुबह, क्रिसमस के दिन, जब फेरीवाला नहा-धोकर और आयरनमास्टर के कपड़े पहनकर साफ-सुथरा होकर बाहर आता है, तो आयरनमास्टर उसे पहचान लेता है कि वह कप्तान वॉन स्टाले नहीं है। आयरनमास्टर बहुत नाराज़ होता है और उसे पुलिस को सौंपने की धमकी देता है। लेकिन एडला बीच में हस्तक्षेप करती है। वह अपने पिता से कहती है कि उन्होंने उसे क्रिसमस पर मेहमान के तौर पर बुलाया था और अब वे उसे ऐसे नहीं भेज सकते। वह कहती है कि यह उनकी गलती है कि उन्होंने एक अजनबी को घर बुलाया और उसे क्रिसमस की शांति का आनंद लेने देना चाहिए। उसके आग्रह पर आयरनमास्टर मान जाता है, लेकिन वह फेरीवाले को जल्द से जल्द चले जाने को कहता है।

फेरीवाले का परिवर्तन:

एडला का निस्वार्थ प्रेम, विश्वास और सम्मान फेरीवाले के दिल को छू जाता है। उसने अपने जीवन में कभी इतना अच्छा व्यवहार नहीं देखा था। वह पूरा दिन उनके साथ शांति से बिताता है।

विदाई और उपहार:

अगली सुबह, क्रिसमस के बाद, आयरनमास्टर और एडला चर्च जाते हैं। चर्च में उन्हें पता चलता है कि राम्शो आयरनवर्क्स के एक पुराने क्रॉफ्टर के यहाँ एक चूहेदानी बेचने वाले ने पैसे चुराए हैं। वे चिंतित होकर घर लौटते हैं, उन्हें डर होता है कि फेरीवाला घर का कीमती सामान चुराकर भाग गया होगा।

लेकिन घर पहुँचने पर, नौकर उन्हें बताता है कि फेरीवाला जा चुका है, लेकिन उसने कुछ भी चुराया नहीं है। बल्कि, उसने एडला के लिए एक छोटा सा उपहार छोड़ा है - एक छोटी सी चूहेदानी। उस चूहेदानी के अंदर बूढ़े क्रॉफ्टर के चुराए हुए तीस क्रोनोर और एक पत्र था।

पत्र और संदेश:

पत्र एडला के नाम था। उसमें लिखा था:

"आदरणीय और नेक मिस,

चूँकि आपने मेरे साथ पूरे दिन एक असली कप्तान जैसा व्यवहार किया, मैं भी आपके साथ एक कप्तान जैसा व्यवहार करना चाहता हूँ। मैं नहीं चाहता कि आप इस क्रिसमस के मौके पर एक चोर की वजह से शर्मिंदा हों। आपको ये पैसे उस बूढ़े आदमी को लौटा देने चाहिए जिसके यहाँ ये खिड़की पर टँगे थे... चूहेदानी एक चूहे की तरफ से क्रिसमस का उपहार है जो इस दुनिया की चूहेदानी में फँस गया होता अगर उसे कप्तान के स्तर तक नहीं उठाया गया होता, क्योंकि इसी वजह से उसे खुद को साफ करने की शक्ति मिली।

सम्मान सहित लिखा,

कप्तान वॉन स्टाले।"

कहानी का सार और संदेश:

यह कहानी दर्शाती है कि मानवीय समझ, करुणा, दया और विश्वास किसी भी व्यक्ति के अंदर की अच्छाई को जगा सकते हैं, चाहे वह कितना भी बुरा क्यों न हो। एडला के निस्वार्थ व्यवहार ने फेरीवाले को बदल दिया। उसने फेरीवाले को सिर्फ एक इंसान के रूप में देखा, न कि उसकी परिस्थितियों या गलतियों के आधार पर। उसके विश्वास ने फेरीवाले को यह महसूस कराया कि वह भी सम्मान और अच्छे जीवन का हकदार है, और उसे दुनिया की "चूहेदानी" से बाहर निकलने और एक बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा दी। कहानी यह भी बताती है कि दुनिया के प्रलोभन अस्थायी होते हैं और सच्चा सुख मानवीय संबंधों और अच्छाई में निहित है।

 

पाठ: इंडिगो (Indigo)

लेखक: लुई फिशर (Louis Fischer)

(यह अंश लुई फिशर की प्रसिद्ध पुस्तक "द लाइफ ऑफ महात्मा गांधी" से लिया गया है।)

परिचय:

"इंडिगो" पाठ महात्मा गांधी के भारत में पहले प्रमुख सत्याग्रह, चंपारण आंदोलन (1917) का विस्तृत वर्णन करता है। यह दिखाता है कि कैसे गांधीजी ने चंपारण (बिहार) के गरीब और शोषित नील किसानों (बटाईदारों) को ब्रिटिश जमींदारों के अन्यायपूर्ण अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। यह पाठ गांधीजी के दृढ़ संकल्प, नेतृत्व क्षमता और उनकी कार्यशैली पर प्रकाश डालता है।

मुख्य घटनाएँ:

राजकुमार शुक्ल का आगमन:

कहानी 1916 में लखनऊ में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन से शुरू होती है। चंपारण का एक गरीब, अनपढ़ लेकिन दृढ़ निश्चयी किसान, राजकुमार शुक्ल, गांधीजी से मिलने आता है। वह गांधीजी से चंपारण चलने का आग्रह करता है ताकि वे वहां के नील बटाईदारों की दयनीय स्थिति देख सकें और उनकी मदद कर सकें। चंपारण में एक पुरानी व्यवस्था के तहत किसानों को अपनी जोत के 15% हिस्से पर नील की खेती करनी होती थी और पूरी नील की फसल किराए के रूप में ब्रिटिश जमींदारों को सौंपनी पड़ती थी।

गांधीजी की व्यस्तता और शुक्ल की दृढ़ता:

गांधीजी उस समय बहुत व्यस्त थे और उन्होंने शुक्ल को बताया कि उनके कई अन्य कार्यक्रम हैं। लेकिन शुक्ल हताश नहीं हुआ और जहाँ-जहाँ गांधीजी गए, वह उनके पीछे-पीछे गया। अंततः, गांधीजी शुक्ल की लगन से प्रभावित हुए और कलकत्ता में एक निश्चित तिथि पर मिलने का वादा किया, जहाँ से वे चंपारण जाएंगे।

चंपारण की यात्रा और प्रारंभिक अनुभव:

निर्धारित समय पर शुक्ल गांधीजी को कलकत्ता से लेकर पटना पहुँचा। पटना में वे राजेंद्र प्रसाद (जो बाद में भारत के पहले राष्ट्रपति बने) के घर गए। उस समय राजेंद्र प्रसाद शहर से बाहर थे। उनके नौकरों ने गांधीजी को एक साधारण किसान समझा और उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया, यहाँ तक कि उन्हें कुएँ से पानी भी नहीं निकालने दिया, यह सोचकर कि वे अछूत हो सकते हैं।

मुजफ्फरपुर में जानकारी संग्रह:

गांधीजी ने चंपारण की स्थिति के बारे में और अधिक जानकारी जुटाने के लिए पहले मुजफ्फरपुर जाने का फैसला किया। वहाँ प्रोफेसर जे.बी. कृपलानी ने अपने छात्रों के साथ रेलवे स्टेशन पर उनका स्वागत किया और वे प्रोफेसर मलकानी के घर पर दो दिन रुके। यह उस समय एक असाधारण बात थी क्योंकि लोग सरकार के खिलाफ आंदोलन करने वालों को शरण देने से डरते थे। मुजफ्फरपुर में गांधीजी ने स्थानीय वकीलों से मुलाकात की जो किसानों के मुकदमों की पैरवी कर रहे थे और उनसे भारी फीस वसूल रहे थे। गांधीजी ने उन्हें इसके लिए फटकार लगाई और कहा कि गरीब किसानों को अदालत ले जाना व्यर्थ है, असली राहत उन्हें डर से मुक्ति दिलाना है।

ब्रिटिश अधिकारियों से टकराव:

गांधीजी ने ब्रिटिश लैंडलॉर्ड एसोसिएशन के सचिव से मिलने की कोशिश की, लेकिन उसने किसी भी बाहरी व्यक्ति को जानकारी देने से इनकार कर दिया। फिर वे तिरहुत डिवीजन के ब्रिटिश कमिश्नर से मिले, जिसने गांधीजी को धमकाया और तुरंत तिरहुत छोड़ने की सलाह दी। गांधीजी नहीं गए।

मोतिहारी और सविनय अवज्ञा की शुरुआत:

गांधीजी ने चंपारण जिले की राजधानी मोतिहारी को अपना मुख्यालय बनाया। जब वे एक किसान पर हो रहे अत्याचार की जांच करने के लिए एक गाँव जा रहे थे, तो उन्हें पुलिस सुपरिटेंडेंट के संदेशवाहक ने चंपारण छोड़ने का सरकारी आदेश दिया। गांधीजी ने आदेश पर हस्ताक्षर करके प्राप्ति स्वीकार की, लेकिन लिखा कि वे आदेश का पालन नहीं करेंगे। यह भारत में सविनय अवज्ञा (Civil Disobedience) का पहला प्रयोग था।

अदालत में पेशी और जनसमर्थन:

अगले दिन गांधीजी को अदालत में पेश होने का समन मिला। हजारों किसान गांधीजी के समर्थन में मोतिहारी में इकट्ठा हो गए। यह ब्रिटिश अधिकारियों के लिए अप्रत्याशित था और उन्होंने भीड़ को नियंत्रित करने में गांधीजी की मदद ली। गांधीजी ने अदालत में कहा कि वे "कर्तव्यों के टकराव" में थे - एक तरफ वे कानून तोड़ने वाले के रूप में नहीं दिखना चाहते थे, और दूसरी तरफ वे "मानवीय और राष्ट्रीय सेवा" करना चाहते थे जिसके लिए वे आए थे। उन्होंने अवज्ञा के लिए दंड भुगतने की तत्परता दिखाई। मजिस्ट्रेट ने फैसला टाल दिया और कुछ दिनों बाद लेफ्टिनेंट-गवर्नर ने मुकदमा वापस लेने का आदेश दिया।

किसानों के बयान और जांच आयोग:

अब गांधीजी और उनके सहयोगी वकीलों (राजेंद्र प्रसाद, ब्रजकिशोर बाबू, मौलाना मज़हरुल हक़ आदि) ने लगभग दस हजार किसानों के बयान दर्ज किए, जिनमें ब्रिटिश जमींदारों द्वारा किए गए शोषण का विवरण था। इस प्रक्रिया से किसानों में आत्मविश्वास जागा और उनका डर कम हुआ। सरकार दबाव में आ गई और जून में, सर एडवर्ड गेट, लेफ्टिनेंट-गवर्नर, ने एक आधिकारिक जांच आयोग का गठन किया, जिसमें गांधीजी को किसानों के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में शामिल किया गया।

समझौता और किसानों की जीत:

जांच में जमींदारों को दोषी पाया गया। गांधीजी ने अवैध रूप से वसूले गए धन का 50% वापस करने की मांग की। जमींदारों के प्रतिनिधियों ने सोचा कि गांधीजी पूरी रकम मांगेंगे, इसलिए जब उन्होंने केवल 25% वापस करने की पेशकश की, तो गांधीजी तुरंत सहमत हो गए। गांधीजी के लिए पैसे की मात्रा कम महत्वपूर्ण थी; महत्वपूर्ण यह था कि जमींदार अपनी गलती मानने और पैसे लौटाने पर मजबूर हुए थे। इससे उनकी प्रतिष्ठा को धक्का लगा और किसानों को उनके अधिकार और साहस का एहसास हुआ। कुछ वर्षों के भीतर, ब्रिटिश जमींदारों ने अपनी जागीरें छोड़ दीं और नील की बटाईदारी समाप्त हो गई।

चंपारण में सामाजिक और सांस्कृतिक उत्थान:

गांधीजी केवल राजनीतिक या आर्थिक समाधान तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने चंपारण की सामाजिक और सांस्कृतिक पिछड़ेपन को दूर करने का भी प्रयास किया। उन्होंने स्वयंसेवकों (महादेव देसाई, नरहरि पारिख और उनके युवा पुत्र देवदास गांधी) की मदद से छह गाँवों में प्राथमिक विद्यालय खोले। कस्तूरबा गांधी ने व्यक्तिगत स्वच्छता और सामुदायिक सफाई के बारे में महिलाओं को सिखाया। एक डॉक्टर ने छह महीने तक अपनी सेवाएं मुफ्त में दीं।

 आत्मनिर्भरता का पाठ:

जब गांधीजी के एक अंग्रेजी शांतिवादी अनुयायी, चार्ल्स फ्रीर एंड्रयूज, फिजी द्वीप समूह जाने से पहले गांधीजी से विदा लेने आए, तो गांधीजी के वकील मित्रों ने सोचा कि एंड्रयूज को चंपारण में रुककर उनकी मदद करनी चाहिए। लेकिन गांधीजी ने इसका कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह उनकी कमजोरी को दर्शाता है अगर वे अपनी लड़ाई में किसी अंग्रेज पर निर्भर रहते हैं। उन्हें अपनी लड़ाई खुद लड़नी चाहिए और आत्मनिर्भर बनना चाहिए।

निष्कर्ष और महत्व:

चंपारण प्रकरण गांधीजी के जीवन और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह पहली बार था जब गांधीजी ने भारत में सविनय अवज्ञा का सफल प्रयोग किया। इसने दिखाया कि आम लोगों को एकजुट करके अहिंसक तरीके से ब्रिटिश शासन को चुनौती दी जा सकती है। इस आंदोलन ने गांधीजी को भारतीय राजनीति के केंद्र में स्थापित कर दिया और उनकी कार्यशैली – तथ्यों पर आधारित जांच, अहिंसक प्रतिरोध, और आम लोगों पर विश्वास – को प्रदर्शित किया। चंपारण ने किसानों को निडर बनाया और उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया।

यह कहानी दर्शाती है कि एक दृढ़ निश्चयी नेता कैसे आम लोगों को संगठित करके बड़े से बड़े अन्याय का सामना कर सकता है और सामाजिक परिवर्तन ला सकता है।

 "Poets and Pancakes" पाठ का विस्तृत सारांश

कवि और पैनकेक्स (Poets and Pancakes)

यह पाठ अशोकमित्रन द्वारा लिखित है और उनकी पुस्तक 'माई इयर्स विद बॉस' से लिया गया है। यह पाठ 1950 के दशक की जेमिनी स्टूडियोज की कार्यप्रणाली, उसके कर्मचारियों और उस समय के सामाजिक परिवेश का एक विस्तृत और विनोदी विवरण प्रस्तुत करता है।

जेमिनी स्टूडियोज: एक केंद्रबिंदु

पैनकेक मेकअप: पाठ की शुरुआत जेमिनी स्टूडियोज में इस्तेमाल होने वाले मेकअप ब्रांड 'पैनकेक' के विवरण से होती है। लेखक बताते हैं कि यह मेकअप राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अभिनेत्रियों द्वारा पसंद किया जाता था, लेकिन स्टूडियो में इसका इस्तेमाल 'पैनकेक' नामक ट्रक लोड में किया जाता था। स्टूडियो में इसका अत्यधिक और बेतरतीब इस्तेमाल होता था, जिससे अभिनेता और अभिनेत्रियां बहुत अजीब दिखते थे।

मेकअप विभाग: मेकअप विभाग एक बड़ा और भीड़भाड़ वाला स्थान था, जहाँ हमेशा रोशनी रहती थी। यहाँ के कर्मचारी, विशेषकर मेकअप विभाग के प्रमुख, कलाकारों को बदसूरत बनाने के लिए जाने जाते थे। कलाकारों का मेकअप कमरे के अंदर ही किया जाता था और उनकी त्वचा की रंगत के हिसाब से मेकअप नहीं किया जाता था। इस अत्यधिक मेकअप के कारण अभिनेता-अभिनेत्रियां अजीब दिखते थे। मेकअप विभाग के प्रमुख (जो पहले हेयरड्रेसर थे) के अलावा, एक वरिष्ठ सहायक, एक जूनियर सहायक और मेकअप टीम के अन्य सदस्य भी थे।

दफ्तर का माहौल: स्टूडियो में एक निश्चित पदानुक्रम था। मेकअप विभाग के प्रमुख के अधीन एक वरिष्ठ सहायक, एक जूनियर सहायक, और अन्य थे। सहायक अक्सर एक-दूसरे से और लेखकों से ईर्ष्या करते थे। लेखक बताते हैं कि मेकअप विभाग के लोग अक्सर असंतुष्ट रहते थे क्योंकि वे सोचते थे कि वे फिल्म स्टार बनने के लिए बने हैं।

लेखक का कार्य और स्थिति

अशोकमित्रन, लेखक, स्टूडियो के एक छोटे से केबिन में काम करते थे। उनका काम अखबारों से क्लिपिंग्स इकट्ठा करना और फाइलों में रखना था, जो शायद बॉस को कहानियों और कविताओं के लिए विचार खोजने में मदद करती थीं। उनका काम महत्वहीन समझा जाता था, और वे हमेशा 'जेमिनी स्टूडियोज' में एक 'दरबारी' की तरह रहते थे।

उनके केबिन के पास ही एक डबिंग थिएटर था, जहाँ आवाज़ें रिकॉर्ड की जाती थीं। लेखक अक्सर बोरियत महसूस करते थे और सोचते थे कि उनका काम किसी भी रचनात्मकता से रहित है।

कोठा मंगलम सुब्बू: जेमिनी स्टूडियोज का एक अभिन्न अंग

पाठ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कोठा मंगलम सुब्बू को समर्पित है, जो जेमिनी स्टूडियोज में नंबर दो की स्थिति में थे। लेखक सुब्बू का बहुत प्रशंसा से वर्णन करते हैं।

बहुमुखी प्रतिभा: सुब्बू एक असाधारण रूप से प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। वह मद्रास के सबसे अमीर और सबसे प्रसिद्ध पुरुषों में से एक थे। वह एक उत्कृष्ट अभिनेता, एक कुशल गीतकार, एक रचनात्मक निर्देशक, एक कुशल कोरियोग्राफर और एक बेहतरीन कहानीकार थे। वह स्टूडियो की सभी समस्याओं का समाधान ढूंढने वाले थे।

वफादारी और परोपकार: सुब्बू बॉस के प्रति अत्यंत वफादार थे और उनकी सफलता में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। वह हमेशा जरूरतमंदों की मदद के लिए तैयार रहते थे और अपने आसपास के लोगों को खुश रखते थे। वह एक ऐसे व्यक्ति थे जो कभी किसी की बुराई नहीं करते थे।

ईर्ष्या का शिकार: उनकी सफलता और बॉस के साथ उनके करीबी रिश्ते के कारण, कुछ लोग, विशेषकर ऑफिस बॉय, उनसे ईर्ष्या करते थे। ऑफिस बॉय का मानना था कि सुब्बू का प्रमोशन केवल उनकी चापलूसी के कारण हुआ था।

 ऑफिस बॉय: एक अप्रसन्न कर्मचारी

मेकअप विभाग में एक 'ऑफिस बॉय' था, जो मेकअप कलाकारों को तैयार करने के लिए पेंट मिक्स करता था। वह चालीस साल का था, लेकिन उसे अभी भी 'ऑफिस बॉय' कहा जाता था। वह फिल्मों में एक अभिनेता, एक पटकथा लेखक, एक निर्देशक या एक गीतकार बनने का सपना देखता था, लेकिन उसे अपने सपनों को पूरा करने का मौका नहीं मिला।

वह सुब्बू से बहुत ईर्ष्या करता था क्योंकि उसका मानना था कि सुब्बू बॉस के करीबी होने के कारण सफल हुआ था। वह लेखक को अक्सर अपनी निराशा और असफलता के बारे में बताता था, जिससे लेखक भी ऊब जाते थे।

वकील: तर्कहीनता का प्रतीक

जेमिनी स्टूडियोज में एक कानूनी सलाहकार भी था, जिसे अक्सर 'वकील' कहा जाता था। वह एक विचित्र व्यक्ति था, जो अनजाने में स्टूडियो में बहुत नुकसान पहुंचाता था।

वह 'एक्टर्स' नामक एक समूह का भी हिस्सा था, जो अक्सर लेखन विभाग में मिलते थे। एक बार, वकील ने एक अभिनेत्री का करियर खत्म कर दिया क्योंकि उसने अपने गुस्से को नियंत्रित नहीं किया और रिकॉर्डिंग रूम में एक कलाकार पर चिल्लाया, जिससे अभिनेत्री ने अपने करियर को अलविदा कह दिया। इस घटना के बाद से, वकील को तर्कहीनता का प्रतीक माना जाने लगा।

वह इयरफोन से बहुत डरता था और माइक्रोफोन में भी अपनी आवाज नहीं सुनता था।

नैतिक पुनर्शस्त्रीकरण सेना (MRA): एक यात्रा और उसके प्रभाव

जेमिनी स्टूडियोज में 'नैतिक पुनर्शस्त्रीकरण सेना' (Moral Rearmament Army - MRA) नामक एक अंतर्राष्ट्रीय थिएटर ग्रुप आया। उन्होंने दो नाटक प्रस्तुत किए - 'जोथम वैली' और 'द फॉरगॉटन फैक्टर'

एमआरए को 'जेमिनी स्टूडियोज' और बॉस द्वारा भव्य स्वागत किया गया, क्योंकि उनके नाटक कम्युनिज्म के खिलाफ थे, और बॉस कम्युनिज्म के कट्टर विरोधी थे।

लेखक बताते हैं कि एमआरए के आने से जेमिनी स्टूडियोज में एक नया माहौल बना, लेकिन उनके नाटकों का मुख्य उद्देश्य शीत युद्ध के दौरान पश्चिमी देशों के विचारों को बढ़ावा देना था।

स्टीफन स्पेंडर और 'एनकाउंटर'

पाठ के अंत में, लेखक एक बार फिर निराशा महसूस करते हैं और नौकरी छोड़कर एक किताब पढ़ने की सोचते हैं।

वह एक पत्रिका 'एनकाउंटर' देखते हैं, जिसके संपादक स्टीफन स्पेंडर थे। लेखक पहले स्पेंडर को नहीं जानते थे, लेकिन बाद में उन्हें पता चलता है कि स्पेंडर एक प्रसिद्ध ब्रिटिश कवि और निबंधकार थे।

वह स्पेंडर के लेखन से प्रभावित होते हैं और उनकी विचारधारा से जुड़ते हैं। लेखक अंत में बताते हैं कि कैसे उन्होंने स्पेंडर की किताब 'द गॉड दैट फेल्ड' पढ़ी, जो उन कम्युनिस्टों के बारे में थी जिन्होंने कम्युनिज्म से मोहभंग का अनुभव किया था। यह पुस्तक जेमिनी स्टूडियोज के राजनीतिक और सामाजिक माहौल के साथ एक संबंध स्थापित करती है।

निष्कर्ष

"पोएट्स एंड पैनकेक्स" एक ऐसा पाठ है जो जेमिनी स्टूडियोज के अंदरूनी कामकाज, उसके कर्मचारियों के बीच के संबंधों, उस समय के सामाजिक और राजनीतिक रुझानों और लेखक के स्वयं के अनुभवों को एक मनोरंजक और विनोदी तरीके से प्रस्तुत करता है। यह उस युग की एक झलक प्रदान करता है जब भारतीय फिल्म उद्योग अपने शुरुआती चरण में था और कैसे स्टूडियो ने लोगों के जीवन को प्रभावित किया।

"गोइंग प्लेसेस" (Going Places) पाठ का विस्तृत सारांश

पाठ का परिचय:

"गोइंग प्लेसेस" (Going Places) ए.आर. बार्टन (A.R. Barton) द्वारा लिखी गई एक कहानी है जो किशोरावस्था के सपनों, कल्पनाओं और कठोर वास्तविकता के बीच के द्वंद्व को दर्शाती है। कहानी की मुख्य पात्र सोफी (Sophie) नाम की एक किशोरी है जो अपनी साधारण जिंदगी से ऊब चुकी है और ग्लैमर तथा प्रसिद्धि की दुनिया में खोई रहती है।

सोफी के सपने और कल्पनाएँ:

सोफी एक निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार से है, लेकिन उसके सपने बहुत ऊँचे हैं। वह एक बुटीक खोलने, एक अभिनेत्री बनने या एक फैशन डिज़ाइनर बनने का सपना देखती है। वह अपनी दोस्त जैंसी (Jansie) के साथ इन सपनों को साझा करती है, जो अधिक यथार्थवादी और व्यावहारिक है। जैंसी जानती है कि वे दोनों बिस्किट फैक्ट्री में काम करने के लिए ही बनी हैं और सोफी के सपने अव्यावहारिक हैं।

डैनी केसी का प्रसंग:

सोफी की कल्पनाओं में सबसे प्रमुख है युवा और प्रसिद्ध आयरिश फुटबॉल खिलाड़ी डैनी केसी (Danny Casey) से उसकी तथाकथित मुलाकात। वह अपने बड़े भाई जेफ़ (Geoff) को बताती है कि वह डैनी केसी से एक आर्केड में मिली थी, और डैनी ने उससे ऑटोग्राफ मांगा था और अगली बार मिलने का वादा भी किया था। जेफ़, जो एक मैकेनिक का काम सीख रहा है, सोफी का आदर्श है। वह उसकी बातों पर पूरी तरह विश्वास तो नहीं करता, लेकिन उन्हें सुनता है। सोफी जेफ़ की रहस्यमयी दुनिया का हिस्सा बनना चाहती है और उससे अपनी सारी बातें साझा करती है।

परिवार की प्रतिक्रिया और जैंसी की जिज्ञासा:

जब जेफ़ यह बात अपने पिता को बताता है, तो वे इसे सोफी की एक और मनगढ़ंत कहानी मानकर उस पर गुस्सा होते हैं। सोफी की माँ घर के कामों में व्यस्त रहती है और उसकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देती। जैंसी को जब इस बारे में पता चलता है, तो वह बहुत उत्सुक हो जाती है और सोफी से डैनी केसी के बारे में और जानना चाहती है। सोफी जैंसी को यह राज़ रखने के लिए कहती है, क्योंकि वह नहीं चाहती कि उसकी निजी बातें दूसरों को पता चलें।

काल्पनिक मुलाकात का इंतज़ार:

सोफी ने जेफ़ को बताया होता है कि डैनी केसी उससे शनिवार को नहर के किनारे एक सुनसान जगह पर मिलेगा। शनिवार को, सोफी सज-धज कर उस जगह पहुँचती है और डैनी का इंतज़ार करती है। वह अपने मन में डैनी के आने, उससे बातचीत करने और उसके साथ अपने भविष्य की कल्पनाएँ करती है। जैसे-जैसे समय बीतता जाता है और डैनी नहीं आता, सोफी की उम्मीदें टूटने लगती हैं।

मोहभंग और वास्तविकता का सामना:

अंततः, सोफी को यह एहसास होता है कि डैनी केसी कभी नहीं आएगा और यह सब उसकी अपनी कल्पना थी। वह निराश और दुखी होकर घर लौटती है। उसे अपनी कल्पना और वास्तविकता के बीच का कड़वा अंतर समझ आता है। वह डैनी केसी को फुटबॉल मैच में खेलते हुए देखती है और जानती है कि उसके और डैनी केसी के बीच कोई वास्तविक संबंध नहीं है, यह सब सिर्फ उसकी कल्पना का खेल था।

कहानी का संदेश और मुख्य विषय:

यह कहानी निम्नलिखित मुख्य विषयों पर प्रकाश डालती है:

किशोरावस्था की कल्पनाएँ (Adolescent Fantasizing): किशोर अक्सर अपनी सामान्य जिंदगी से बचने के लिए कल्पनाओं का सहारा लेते हैं।

सपने बनाम वास्तविकता (Dreams vs. Reality): कहानी दिखाती है कि कैसे बड़े सपने देखना और उनके सच न होने पर निराशा का सामना करना पड़ता है।

पलायनवाद (Escapism): सोफी अपनी नीरस और सीमित वास्तविकता से भागने के लिए कल्पनाओं का जाल बुनती है।

नायक-पूजा (Hero-worship): डैनी केसी के प्रति सोफी का आकर्षण नायक-पूजा का एक उदाहरण है।

पारिवारिक संबंध (Family Relationships): कहानी सोफी के उसके भाई, पिता और माँ के साथ संबंधों को भी दर्शाती है।

सामाजिक-आर्थिक बाधाएँ (Socio-economic Constraints): सोफी की पृष्ठभूमि उसके सपनों को पूरा करने में एक बाधा के रूप में दिखाई देती है।

संक्षेप में, "गोइंग प्लेसेस" एक मार्मिक कहानी है जो एक युवा लड़की के मन की उड़ान और उसके टूटे हुए सपनों के माध्यम से जीवन की कठोर सच्चाइयों को प्रस्तुत करती है। यह दिखाती है कि कल्पना की दुनिया आकर्षक हो सकती है, लेकिन अंततः हमें वास्तविकता का सामना करना ही पड़ता है।

"द इंटरव्यू" (The Interview) पाठ का विस्तृत सारांश

पाठ का परिचय:

"द इंटरव्यू" (The Interview) क्रिस्टोफर सिल्वेस्टर (Christopher Silvester) द्वारा लिखा गया है। यह पाठ उनकी पुस्तक "पेंगुइन बुक ऑफ इंटरव्यूज" (Penguin Book of Interviews) की प्रस्तावना का एक अंश है। इस पाठ को दो भागों में बांटा गया है।

भाग I: साक्षात्कार पर विभिन्न विचार (Various Opinions on the Interview)

साक्षात्कार का आविष्कार और महत्व (Invention and Importance of Interview):

लेखक बताते हैं कि साक्षात्कार (interview) पत्रकारिता में एक आम विधा है, जिसका आविष्कार लगभग 130 साल पहले हुआ था।

आज, हजारों प्रसिद्ध लोग साक्षात्कार दे चुके हैं और करोड़ों लोगों ने उन्हें पढ़ा या देखा है। यह हमारे समकालीनों के बारे में जानकारी का एक प्रमुख स्रोत बन गया है।

साक्षात्कार के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण (Negative Views towards Interview):

बहुत से प्रसिद्ध लोग साक्षात्कार को अपने जीवन में एक अनावश्यक हस्तक्षेप (unwarranted intrusion) मानते हैं और इसे नापसंद करते हैं।

वी.एस. नायपॉल (V.S. Naipaul) का मानना था कि साक्षात्कार लोगों को "घायल" करते हैं और वे "अपना एक हिस्सा खो देते हैं।"

लुईस कैरोल (Lewis Carroll), "एलिस इन वंडरलैंड" के लेखक, साक्षात्कार देने से इतना डरते थे कि उन्होंने कभी सहमति नहीं दी। वह खुद को प्रसिद्धि दिलाने वालों से दूर रहते थे।

रुडयार्ड किपलिंग (Rudyard Kipling) साक्षात्कार को "अनैतिक" (immoral), "अपराध" (offence), और "हमला" (assault) मानते थे जिसके लिए सज़ा मिलनी चाहिए। उनकी पत्नी कैरोलीन ने अपनी डायरी में लिखा है कि कैसे दो रिपोर्टरों ने बोस्टन में उनके दिन को बर्बाद कर दिया था।

एच.जी. वेल्स (H.G. Wells) ने 1894 में साक्षात्कार को एक "कठिन परीक्षा" (ordeal) कहा था, हालांकि बाद में उन्होंने अक्सर साक्षात्कार दिए।

सॉल बेलो (Saul Bellow) ने एक बार साक्षात्कार को ऐसे वर्णित किया जैसे कोई उनके "गले पर अंगूठे का निशान छोड़ रहा हो" (thumbprints on his windpipe)

साक्षात्कार के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण (Positive Views towards Interview):

इसके विपरीत, कुछ लोग साक्षात्कार को सत्य का एक उपयोगी माध्यम मानते हैं।

डेनिस ब्रायन (Denis Brian) के अनुसार, साक्षात्कार अपने उच्चतम रूप में "सत्य का स्रोत" (a source of truth) है और अपनी प्रक्रिया में एक "कला" (an art) है।

साक्षात्कार की शक्ति (Power of Interview):

साक्षात्कारकर्ता (interviewer) एक अद्वितीय और शक्तिशाली स्थिति में होता है। वह व्यक्ति के बारे में ऐसी धारणाएं बनाता है जो स्थायी हो सकती हैं।

भाग II: अम्बर्टो इको के साथ एक साक्षात्कार (An Interview with Umberto Eco)

यह भाग मुकुंद पद्मनाभन (Mukund Padmanabhan) द्वारा (जो "द हिंदू" अखबार से हैं) प्रसिद्ध इतालवी उपन्यासकार, निबंधकार, प्रोफेसर और दार्शनिक अम्बर्टो इको (Umberto Eco) के साथ लिए गए एक साक्षात्कार का अंश है।

अम्बर्टो इको का परिचय:

इको एक प्रतिष्ठित विद्वान हैं जिन्होंने संकेतशास्त्र (semiotics), साहित्यिक व्याख्या, और मध्ययुगीन सौंदर्यशास्त्र (medieval aesthetics) पर गंभीर काम किया है, और फिर उन्होंने उपन्यास लिखना शुरू किया।

उनके अकादमिक कार्य, उपन्यास, बच्चों की किताबें, और समाचार पत्रों के लेखों की एक विशाल और विविध श्रृंखला है।

इको की कार्यशैली और समय का उपयोग:

मुकुंद पूछते हैं कि इको इतनी सारी चीजें कैसे कर लेते हैं।

इको बताते हैं कि उनके सभी कार्यों में एक दार्शनिक रुचि (philosophical interest) समान है। वह अपनी अकादमिक और काल्पनिक रचनाओं के माध्यम से इन्हीं रुचियों का अनुसरण करते हैं। यहां तक कि उनकी बच्चों की किताबें भी अहिंसा और शांति जैसे नैतिक और दार्शनिक विषयों पर हैं।

वह बताते हैं कि वह "इंटर्सटिसेस" (interstices) यानी दो गतिविधियों के बीच के खाली समय का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, किसी के एलिवेटर से आने का इंतजार करते समय वह एक लेख लिख सकते हैं। उनका मानना है कि इन अंतरालों का उपयोग करके बहुत काम किया जा सकता है।

इको की लेखन शैली:

मुकुंद कहते हैं कि इको का गैर-काल्पनिक लेखन (non-fictional writing) बहुत चंचल और व्यक्तिगत (playful and personal) है, जो आमतौर पर शुष्क अकादमिक शैली से अलग है।

इको बताते हैं कि जब उन्होंने अपना पहला डॉक्टरेट शोध प्रबंध प्रस्तुत किया, तो उनके एक प्रोफेसर ने कहा था कि विद्वानों को अपनी रिसर्च की कहानी बतानी चाहिए, जिसमें उनके द्वारा किए गए परीक्षण और त्रुटियां भी शामिल हों। इसी तरह उन्होंने अपनी गैर-काल्पनिक शैली विकसित की।

उपन्यास उन्होंने लगभग 50 वर्ष की आयु में लिखना शुरू किया, एक तरह से दुर्घटना से।

"द नेम ऑफ द रोज़" (The Name of the Rose) की सफलता:

मुकुंद उनके उपन्यास "द नेम ऑफ द रोज़" की भारी सफलता के बारे में पूछते हैं, जिसकी 10 मिलियन से अधिक प्रतियां बिकीं। यह उपन्यास बहुत गंभीर है - एक जासूसी कहानी जिसमें तत्वमीमांसा (metaphysics), धर्मशास्त्र (theology), और मध्ययुगीन इतिहास (medieval history) का मिश्रण है।

इको कहते हैं कि इसकी सफलता एक रहस्य है। उनके अमेरिकी प्रकाशक ने केवल 3,000 प्रतियों के बिकने की उम्मीद की थी क्योंकि उन्हें लगा कि कोई भी इतना कठिन उपन्यास नहीं पढ़ेगा।

इको का अनुमान है कि शायद लोग आसान पठन सामग्री से ऊब चुके थे और कुछ चुनौतीपूर्ण अनुभव चाहते थे। लेकिन वह निश्चित रूप से नहीं कह सकते।

पाठ का समग्र संदेश:

यह पाठ साक्षात्कार की प्रकृति, इसके विभिन्न पहलुओं और समाज में इसकी भूमिका पर प्रकाश डालता है। पहला भाग साक्षात्कार के बारे में विरोधाभासी विचारों को प्रस्तुत करता है, जबकि दूसरा भाग एक सफल और बहुमुखी लेखक के साक्षात्कार का उदाहरण प्रस्तुत करता है, जिससे हमें उनकी कार्यशैली और विचारों की झलक मिलती है। यह दर्शाता है कि साक्षात्कार जानकारी प्राप्त करने, विचारों को समझने और व्यक्तित्व को जानने का एक शक्तिशाली माध्यम हो सकता है, भले ही इसकी अपनी सीमाएं और विवाद 

Chandra Study Room  का यह प्रयास कक्षा 12वीं के छात्रों को फ्लेमिंगो के पाठों को हिंदी में समझने में मदद करने के लिए बनाया गया है। हमें उम्मीद है कि ये सारांश आपकी परीक्षा की तैयारी को मजबूत करेंगे और आपके आत्मविश्वास को बढ़ाएंगे। नियमित रूप से हमारे ब्लॉग पर आएं, और अपनी पढ़ाई को और भी बेहतर बनाएं। आपकी सफलता हमारा लक्ष्य है!

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